जादूगोड़ा में सुबह जल्दी होती है। (जादूगोड़ा झाड़खंड राज्य में है और यह यूरेनियम माइन्स के लिए जाना जाता है) सुबह चार बजे सूर्योदय हो जाता है। उस समय बकरियों के झुंड के झुंड आदिवासी बस्ती से आते दिखाई देते है। इस तरह के झुंड मैंने पहले कभी नहीं देखे थे। मुंबई में ईद बकरीद के मौंको पर लोकल ट्रेन से सफऱ करते समय ट्रेन जब कुर्ला से गुजरती थी तो पटरियों के इर्द-गिर्द घूमते बकरे दिख जाते थे। शहर में तो कभी देखने का अवसर नहीं मिला। यहां ये बकरी के झुंड हिरनों के झुंड के समान प्रतीत होते है। इन बकरियों की अपनी विशेषताएं हैं। इन्हें सड़क के किनारे उगी घास पसंद नहीं आती। ये ऑफिसर्स कालोनी के बंगलों के मालियों द्वारा प्रयत्नपूर्वक उगायी गई नर्म मुलायम घास और फूल-पत्ते खाना पसंद करती हैं। इसलिए यहां रहने वालों की एक नजर घर के अंदर तो दूसरी घर के बाहर इन बकरियों पर रहती है ताकि वे उनकी मेहनत से पली पुसी बगिया को न उजाड़ सकें। अब से थोड़े दिन पहसे तक हमारे घर का भी यही हाल था। भाभी की एक आँख किचेन में दूसरी इन बकरियों का पीछा करती रहती थी। इन्हें भगाने के लिए वे समयानुसार कभी डंडे का तो कभी ईंट पत्थरों का इस्तेमाल करती थी। आप सोच रहे होंगे ऐसे कैसे संभव है बंगलों के इर्द-गिर्द तो फैंसिंग होती है। आप बिलकुल ठीक सोच रहे हैं, यहां भी कंटीले तारों की फैंसिंग है। कहीं कहीं तो दीवार भी बनी हुई है। पर इनके लिए ये दीवार कोई मायने नहीं रखती। ये अच्छी खासी एथलीट हैं। अगर किसी ने इन्हें हाई जम्प लगाते न देखा हो तो वह विश्वास नहीं करेगा। जम्प लगाने के लिए वे चार कदम पीछे जाती है फिर दौड़ते हुए आती हैं और उछल कर दीवार पर चढ़ जाती हैं या फैसिंग के उस पार निकल जाती हैं। आप इन्हें अपने बच्चो को इसका अभ्यास कराते हुए भी देख सकते हैं। ऐसा ही एक दिन था जब बकरी ने हमारे गार्डेन में अटैक कर दिया। इस बार वह अकेली नहीं थी उसके साथ उसका परिवार भी था। भाभी और कामवाली दोनों ही लोग अन्हें बाहर निकालने का जुगाड़ करने लगे। भाभी के हाथ में पत्थर था उन्होंने वही फेक कर मार दिया। पत्थर बकरी के पैर पर लगा। भाभी ने कहा, “अब नहीं आयेगी।” भाभी को पत्थर मारते हमारी पड़ोसन ने देख लिया और भाभी को सतर्क करते हुए कहा- भाभी इन बकरियों को मत मारिये। एक बार हमने भी ऐसी भूल की थी। हमने फूलों के नये नये पौधे लगाये और बकरी आकर उन्हें चबाने लगी, हमें बहुत गुस्सा आया और वहीं पास पड़े डंडे से उसके पैर पर जोर से मार दिया। डंडा जोर से उसके पैर पर लगा और वह लगड़ाने लगी। हमने मेन गेट खोल कर उसे घर से बाहर जाने दिया। वह लगड़ाते हुए बाहर निकल गई। अभी बहुत समय नहीं गुजरा था कि हमने लोगों का शोर सुना, शोर कहां से आ रहा है यह जानने के लिए हम अपने घर से बाहर आये तो देखते क्या हैं कि लोग तो हमारे ही दरवाजे पर खड़े हैं। पहले तो हमारी समझ में कुछ नहीं आया कि बात क्या है? ये लोग यहां क्यों आये हैं तभी हमारी नजर लगड़ाती बकरी पर गई। अब हमारा माथा ठनका यानी ये बकरी अपने मालिक को लेकर हमारे यहां आयी है। घायल बकरी का मालिक काफी गुस्से में था और हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहें। न स्वीकारते बन रहा था न नकारते। बकरी एकटक हमारी तरफ देख रही थी और बकरी का मालिक कुछ सुनने को तैयार नहीं था। वह हमसे मुआवजे की मांग कर रहा था। वह एक हजार रुपये की मांग कर रहा था, उसका कहना था उसे बकरी का इलाज करवाना पड़ेगा जिसमें काफी पैसा खर्च होगा। शुरुआती ना नुकुर के बाद, बात पांच सौ पर आकर तय हुई। हमने उन्हें पांच सौ रुपये दिये तब कहीं जाकर वे लोग बकरी को लेकर हमारे यहां से टले। वो दिन है और आज का दिन हमने पौधे लगाना ही बंद कर दिया है।
उनकी राम कहानी सुनने के बाद भाभी को महसूस हुआ कि बकरी के पीछे डंडा लेकर घूमने से अच्छा है कि कोई और उपाय अपनाया जाये जिससे पेड़ पौधे भी सुरक्षित रहे और ऐसा कोई बवाल भी न हो। उसके बाद हम लोगों ने निश्चय किया की पिछले दरवाजे से बाग में जाने के रास्ते पर भी एक इतना ऊँचा गेट लगवा दिया जाये जिसे बकरी न फांद सके और हमारी फुलवारी सुरक्षित हो जाये। आज हमारी फुलवारी खूबसूरत फूलों से महक रही है और भाभी की भागमभाग भी बंद हो गई है।
- प्रतिभा वाजपेयी
उनकी राम कहानी सुनने के बाद भाभी को महसूस हुआ कि बकरी के पीछे डंडा लेकर घूमने से अच्छा है कि कोई और उपाय अपनाया जाये जिससे पेड़ पौधे भी सुरक्षित रहे और ऐसा कोई बवाल भी न हो। उसके बाद हम लोगों ने निश्चय किया की पिछले दरवाजे से बाग में जाने के रास्ते पर भी एक इतना ऊँचा गेट लगवा दिया जाये जिसे बकरी न फांद सके और हमारी फुलवारी सुरक्षित हो जाये। आज हमारी फुलवारी खूबसूरत फूलों से महक रही है और भाभी की भागमभाग भी बंद हो गई है।
- प्रतिभा वाजपेयी
ब्लॉग जगत पर स्वागत,पर भूखी बकरियां क्या करेंगी यह सोच कर परेशान हूं
जवाब देंहटाएंखैर
चाहें तो
इन गज़ल को पूरा पढें यहां
उम्र भर साथ था निभाना जिन्हें
फासिला उनके दरमियान भी था
‘.जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस......’
http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
blog jagt me aap ka swagat hai
जवाब देंहटाएंaap ke rachana achchi hai
एक अलग हँटकर बिषय का चुनाव अच्छा लगा। साथ ही यह भी अच्छा लगा कि आप लगभग जमशेदपुर की ही हैं क्योंकि जादूगोड़ा तो यहाँ से बहुत नजदीक है।
जवाब देंहटाएंनोट - वर्ड वेरीफिकेशन हँटाने का उपाय करें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
achachha laga........
जवाब देंहटाएंPesh krne ka andaj pasand aaya
swagat hai........
Shashi Kant Singh
school of rural management
kiit universiyt
bhubaneswar
good article
जवाब देंहटाएंबकरियों ने तो कमाल कर दिया। उनके मालिक भी काफी ढीठ निकले। यहाँ इलाहाबाद में मुझे गो-माता का आतंक झेलना पड़ता है। वे मेन-गेट की सॉकल अपने थूथन से खोलकर बाकायदा गेट से अन्दर आ जाती हैं और सब्जियों को अपना निवाला बना लेती हैं। एक दिन मैने डण्डे का प्रयोग किया लेकिन बाद में पछ्ताता भी रहा। हुआ यूँ कि उसके बाद रात में जोर का तूफान आया और घर की दक्षिणी चारदीवारी गिर गयी। काफी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। करीब एक सप्ताह तक खुला आवागमन होता रहा।
जवाब देंहटाएंबडीं कमाल की बकरियां है। इन्हें तो ओलम्पिक्स में जाना चाहिए हो सकता हैं कि ये कुछ मैडल भारत के लिए भी जीत कर ले आये
जवाब देंहटाएंbheed se alag hai. nice.narayan narayan
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंबकरियां किसी भी बार्डर को नहीं जानती हैं। कुछ भी कर लो आयेंगी जरुर
जवाब देंहटाएंचिट्ठो की दुनिया में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी पधारे....
- गंगू तेली
http://gangu-teli.blogspot.com
आज आपका ब्लॉग देखा.......... बहुत अच्छा लगा.. मेरी कामना है की आपके शब्दों को नए अर्थ, नई ऊंचाइयां और नई ऊर्जा मिले जिससे वे जन-सरोकारों की सशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति का समर्थ माध्यम बन सकें.
जवाब देंहटाएंकभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें-
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
सादर, सद्भाव सहित-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
aapka swagat hai
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